सोमवार, 27 अप्रैल 2020

मरकुस - दिन 28

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पड़ने का भागमरकुस 13 : 1 - 13 

कठिन शब्दों :

1. ढहा दिया जायेगा : 40 सालों के बाद ईस्वी 70 को यह भविष्यवाणी पूरी हुई जब रोमियों ने यरूशलेम पर हमला करके उसे विनाश किया। 

2. दूसरी आयत : शिष्यों ने दो सवालों को पूछा। पहला सवाल था मंदिर के ढहा जाने के विषय में और दूसरा सवाल था यीशु के राज्य का पूरी रीती से इस संसार में स्थापित होना। यीशु ने दूसरे सवाल का उत्तर दिया। वह दिन अभी तक नहीं आया है परन्तु यीशु ने कहा कि हमें सावधान रहना है। 


समझने और विचार करने के लिए प्रश्न:

1. यीशु ने हमें किस बात पे सावधान रहने को कहा ? क्या यीशु ने जो कहा कि ऐसे लोग आएंगे जो कई लोगों को झूट कहते हुए छलेंगे उसे हम आज होते हुए देखते हैं ?

2. यीशु के राज्य का पूरी रीती से आने के पहले १०वी आयात के अनुसार क्या होना चाहिए। क्या मैं उसकी ओर काम करता हूँ ?

3. यीशु के अनुसार हमारे साथ क्या क्या हो सकता है ? (9 से १३ वि आयत को देखिये ) क्या मैं यह सब सहने को तैयार हूँ ?

4. क्या बोलें कहकर न घबराने कि आज्ञा यीशु ने दिया। इसका क्या कारण दिया यीशु ने ? क्या उस कारण के वजह से मुझे आराम और प्रोत्साहन मिलता है ?


शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

मरकुस - दिन 27

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पड़ने का भागमरकुस 12 : 35 - 44 

कठिन शब्दों :
1. दाऊद : वह इस्राएल का सबसे महान राजा था। पुराने नियम में उसके बारे में लिखी गयी है। भविष्यवाणी दी गयी थी पुराने नियम में कि मसीह दाऊद के वंश में पैदा होगा। और वैसा ही हुआ। परन्तु यीशु कह रहे हैं कि हलाकि यीशु शारीरिक रूप में दाऊद से जन्मा , मगर वह दाऊद का भी प्रभु है , या दूसरे शब्दों में वह दाऊद से भी पहले जीवित था , या वह अनंत है। इसका मतलब यही हो सकता है कि यीशु स्वयं परमेश्वर है। 

समझने और विचार करने के लिए प्रश्न:
1. धर्मशास्त्रियों का गुनाह क्या था यीशु के अनुसार ? क्या मुझमे भी वही पाप यीशु को दिखेगा ? क्या मैं भी धर्मशास्त्रियों के समान दिखावे के लिए धार्मिक चीज़ों को करता हूँ ?
2. यीशु ने क्यों कहा कि उस विद्वि औरत ने बहुत ज्यादा दिया ?
3. इन दो कहानियों से हमें क्या पता चलता है ? क्या यीशु बाहरी बर्ताव को देखता है या अपने हृदय को ? क्या वह हमारे कार्यों के देखता है या इरादों को ?

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मरकुस - दिन 26

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पड़ने का भागमरकुस 12 : 18 - 34 

कठिन शब्दों :
1. सदूकी : यह यहूदियों का एक संप्रदाय था। और सरे सम्प्रदायों में से सबसे आमिर और प्रभावशाली सदूकियों थे। वे केवल पुराने नियम के पहले पांच किताबों को परमेश्वर का वचन मानते थे। और इसलिए वे पुनर्जीवन को नहीं मानते थे। क्योंकि पुनर्जीवन के बारे में अधिक वचन बाकि किताबों में है। परन्तु यीशु यहाँ उन्हें पुराने नियम के पहले किताब, उत्पत्ति , से ही उन्हें जवाब दिया यहाँ तक की वे कुछ उल्टा न बोल पाए। 

समझने और विचार करने के लिए प्रश्न:
1. यीशु यहाँ कहते हैं कि पुनर्जीवन है। इसको याद रखते हुए मुझे अपने जीवन को कैसे जीना है ?
2. यीशु ने सदूकियों को कहा कि वे न ही परमेश्वर के वचन को जानते थे और न ही उसके सामर्थ को। क्या मेरे बारे में भी वे वैसा ही कहेंगे ?
3. क्या मैं सच में पुरे मन , जीवन , बुद्धि और शक्ति से परमेश्वर से प्रेम करता हूँ ? ऐसा प्रेम कैसा दिखेगा मेरे रोज़ के जीवन में ?
4. क्या मैं दूसरों को अपने समान प्रेम करता हूँ ?

और गहरी सोच  के लिए:
1. हम कई बार परमेश्वर को भजन गाते हैं, आराधना और प्रार्थन करते हैं। पर क्या मैं परमेश्वर को सरे मन के साथ प्रेम करता हूँ ? अगर मैं सांसारिक चीज़ों के लिए 15 साल स्कूल जाता हूँ , और रोज़ दिन में कई घंटे पड़ता हूँ, तो क्या मैं परमेश्वर के वचन को पढ़ने और समझने में काफी समय देता हूँ ? 

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

मरकुस - दिन 25

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पड़ने का भागमरकुस 12 : 1 - 17 

कठिन शब्दों :
1. कैसर : कैसर का अर्थ था महाराजा। रोमी शासन में कैसर ही सबसे मुख्य व्यक्ति था। उन दिनों में इस्राएल के ऊपर रोमी शासन चल रहा था। और वह बहुत कठोर और क्रूर था। लोग रोमीयों को नफरत करते थे मगर वे कुछ नहीं कर पाते क्योंकि अगर वे कर नहीं चूकते तो रोमी उन्हें सजा देते। इसलिए अगर कोई भी इस्राएली खुल के कहे कि कर देना चाहिए उसे गद्दार समझते थे और लोगों का क्रोध उसके ऊपर भड़कता। यहाँ पर यहूदियों यीशु को फसाने का कोशिश करते हैं। अगर यीशु कहते कि देना चाहिए तो लोग उस पर गुस्सा करते मगर अगर यीशु कहते की नहीं देना चाहिए तो हेरोदियों (जो कि राजा के लोग थे) के हाथ यीशु फसते। 

समझने और विचार करने के लिए प्रश्न:
1. पहला दृष्टान्त से आप क्या समझते हैं ? मेरे पास जो भी है क्या मैं उन चीज़ों का मालिक हूँ या क्या मुझे ये सरे चीज़ें दी गयी हैं ताकि मैं उनका देखभाल करूँ ?
2. क्या मैं यीशु को फ़साने या परखने का कोशिश करता हूँ या नम्रता के साथ उस्की आज्ञा का पालन और उसकी आराधना करता हूँ ?
3. क्या मैं अपने शासन को वो देता हूँ जो देना चाहिए ? या क्या मैं कर देने से बचने का रास्ता निकालता हूँ ?
4. अगर सिक्के में कैसर का चेहरा अंकित है और उत्पत्ति 1:26   के अनुसार हम परमेश्वर के स्वरूप में बनाये गए हैं तो हमें परमेश्वर को क्या देना है ?

और गहरी सोच  के लिए:
1. पहला दृष्टान्त को यीशु ने यहूदियों के लिए कहा। वे परमेश्वर के लोग थे और उन्हें परमेश्वर ने अपना वचन और अपनी आज्ञाएं दी थी। मगर यहूदी लोग अपने आप को खास समझने लगे ये भूलते हुए कि उन्हें जो कुछ था वो परमेश्वर कि दया से था। वे परमेश्वर का भी आदर पुरे दिल से नहीं करते थे मगर अपने आप को धार्मिक और प्रभु के खास लोग के समान दिखते थे। दूसरे शब्दों में वे घमंडी हो गए थे।

मगर जब परमेश्वर ने अपने दासों को भेजा उनके मध्य में वे उन्हें मरते थे और परमेश्वर का आदर नहीं करते थे। यीशु परमेश्वर का इकलौता पुत्र है। और जब उसे भी परमेश्वर ने भेजा तो उन लोगों ने उसे मारा।

क्या मेरे जीवन में परमेश्वर ने जो सत्य दिया है उसे मैं नम्रता पूर्वक लोगों से बांटता हूँ या घमंडी हो कर लोगों कि निंदा करता हूँ ?

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

मरकुस - दिन 24

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पड़ने का भागमरकुस 11 : 20 - 33 

समझने और विचार करने के लिए प्रश्न:
1. प्रार्थना करने से पहले मुझे क्या करना चाहिए ?
2. याजकों और धर्मशास्त्रियों किन से ज्यादा डरते थे - परमेश्वर से या लोगों से ? या दूसरे शब्दों में वे किनको खुश रखने का प्रयास ज्यादा करते थे ? क्या मैं भी उनके समान हूँ इस विषय में ?

और गहरी सोच  के लिए:
1. याजकों और धर्मशास्त्रियों ने यीशु का अधिकार को नहीं माना। क्या मैं यीशु के अधिकार को मानता हूँ मेरे जीवन को साफ करने के लिए ? क्या मैं यीशु को पूरा इजाज़त दिया हूँ की वह मेरे जीवन को कैसे भी तरह से सुधरे ?

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

मरकुस - दिन 23

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पड़ने का भागमरकुस 11 : 12 - 19 

कठिन शब्दों :
1. मन्दिर में : यह मंदिर का बहरी आंगन था। अगर गैर यहूदियों परमेश्वर कि आराधना करना चाहते थे, तो वे लोग यहाँ पर परमेश्वर कि आराधना करने आ सकते थे। परन्तु उन समयों में यहूदियों गैर यहूदियों को मंदिर आने से मन करते हुए, वहां पर अपना धंधा चलने लगे। जो भी लोग आराधना के लिए आते थे उन्हें कई बार कुछ जानवर या चिड़िया लेन कि जरुरत थी बलि के लिए। इसलिए बलि के लिए जानवरों और चिड़ियों को बेचने का धंधा चल रहा था। 

समझने और विचार करने के लिए प्रश्न:
1. अंजीर का पेड़ में सिर्फ फल होने की ऋतू में ही पत्ते निकल आते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो अगर पत्ते दिखे तो उसका मतलब है कि फल भी होना चाहिए। क्या मेरे जीवन में भी फल का दिखावा है मगर फल नहीं ? (मतलब मैं कई चीज़ें करता हूँ जो लोग को दिखे कि मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ लेकिन मेरे मन में बुरी चीज़ें हैं)?
2. जहाँ पर आराधना हो रहा था वहां पर लोग अपने ही भलाई के लिए धंधा चला रहे थे। क्या मेरे जीवन में भी जहाँ आराधना होना चाहिए वो नहीं हो रहा है मगर अपना ही बढ़ाई हो रहा है ?
3.  जब यीशु मेरे गलितयों को सुधारता है , तो क्या मैं याजकों के समान उस पर गुस्सा करता हूँ या क्या मैं अपना गलती स्वीकार करके अपने आप को सुधरने का प्रयास करता हूँ ?

और गहरी सोच  के लिए:
1. मंदिर में रोज़ बलि चढ़ाई जा रही थी मगर किसा का भी मन प्रभु कि ओर नहीं था , वैसे ही जैसे अंजीर के पेड़ में पत्ते थे मगर फल नहीं। हो सकता मेरे जीवन में भी प्रार्थना हो और कई धार्मिक चीज़ें हो, पर हो सकता है की प्रभु मेरे जीवन में न हो। 

रविवार, 19 अप्रैल 2020

मरकुस - दिन 22

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पड़ने का भागमरकुस 10: 45 - 11 : 11 

कठिन शब्दों :
1. दाऊद का पुत्र : पुराने नियम में भविष्यवाणी हुई थी कि जो मसीह आएगा वो दाऊद के वंश का होगा। तो इसलिए उसको दाऊद का पुत्र से भी जाना जाता था। यहां पर वह भिकारी जब यीशु को दाऊद का पुत्र के नाम से पुकारता है तो वह यह बात को स्वीकार करता है और विश्वास करता है कि यीशु ही वो मसीह है जिसके बारे में भविष्याणि दी गई थी। 

2. गधी के बछेरे : जकर्याह 9:9 में भविष्यवाणी दी गयी थी कि मसीह एक गाढ़ी के बछेरे में सवारी करते हुए आएगा। यह भी परमेश्वर के वचन का पूरा होने को दर्शाता है। 

3. होशन्ना : इस शब्द का अर्थ है, प्रभु हमें बचा या प्रभु हमारी सहायता कर।

समझने और विचार करने के लिए प्रश्न:
1. जा आस पास के लोग उस बर्तीमाई को डांटा और चुप कराने का कोशिश किया तो फिर भी वह और जोर से प्रभु कि ओर पुकारता रहा। क्या मैं भी इसके समान औरों की नहीं डरते हुए परमेश्वर से प्रार्थना और विनती करता हूँ ?
2. यीशु के अनुसार उस बर्तीमाई का उद्धार किस सिद्धांत के आधार पे हुआ ? मेरा उद्धार कैसे हो सकता है ? क्या मेरे खुद के अच्छे कामों या मेहनत से या विश्वास से ?
3.  यरूशलेम के लोग यीशु का स्वागत किये। क्या मैं यीशु का मेरे दिल में स्वागत करने को तैयार हूँ ?

और गहरी सोच  के लिए:
1. यीशु का यरूशलेम प्रवेश करना हज़ारों साल पहले दी गयी भविष्याणि के अनुसार हुआ। अगर परमेश्वर का वचन सच होता है, तो क्या मैं उसे उतना ही निश्चयता के साथ पढता हूँ और क्या मेरा उस पर पक्का भरोसा और विश्वास है ?

मरकुस - दिन 28

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